लोहार्गल का अर्थ- वह स्थान जहां लोहा भी गल जाये लोहार्गल कहलाता है।
स्थित- लोहार्गल तीर्थ स्थल भारत के राजस्थान राज्य में झुंझुनू जिले की नवलगढ़ पंचायत समिति की लोहार्गल ग्राम पंचायत के लोहार्गल गांव में अरावली पर्वतमाला के मालकेतु पर्वत की शंखाकर घाटी में स्थित है।
राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ- लोहार्गल जी को राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है। राजस्थान का पहला सबसे बड़ा तीर्थ स्थल पुष्कर (अजमेर) को माना जाता है।
लोहार्गल जी- लोहार्गल जी को स्थानीय भाषा में लोहगर जी कहा जाता है। लोहर्गल जी की 24 कौसी परिक्रमा बहुत प्रसिद्ध मानी जाती है। लोहार्गल जी की 24 कौसी परिक्रमा गोगा नवमी से प्रारम्भ होकर भाद्रपद अमावस्या को समाप्त होती है। परिक्रमा के बाद नर-नारी कुंड में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते है। लोहार्गल जी की 24 कौसी परिक्रमा को मालखेत की परिक्रमा भी कहते है।
उपनाम या अन्य नाम-
पाण्डवों की प्रायश्चित स्थली
1. पाण्डवों की प्रायश्चित स्थली- लोहार्गल जी को पाण्डवों की प्रायश्चित स्थली भी कहा जाता है। क्योंकी जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था उसके बाद पाण्डव अपने भाई बंधुओं की हत्या करने के पाप से बहुत दुःखी थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डवों को यह सुझाव दिया था की जिस तीर्थ के पानी में तुम्हारे हथियार गल जाए उसी तीर्थ में तुम्हें तुम्हारे पापो से मुक्ति मिल सकती है। और पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण के इसी सुझाव को मानते हुए तीर्थ स्थलों पर घूमते-घूमते लोहार्गल तीर्थ स्थल पर पहुँचे तथा जैसे ही पाण्डवों ने लोहार्गल जी के सूर्यकुण्ड में स्नान किया तब पाण्डवों के सभी हत्थियार गल गये। लोहार्गल जी की इसी महिमा को समझ कर पाण्डवों ने लोहार्गल जी को तीर्थ राज की उपाधि दी थी।
भगवान परशुराम- लोहार्गल जी से भगवान परशुराम का भी संबंध है क्योंकी यह माना जाता है की भगवान परशुराम ने क्रोध में क्षत्रियों का संहार कर दिया था लेकिन जब भगवान परशुराम का क्रोध शान्त हुआ तब उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और इसी पाप से मुक्ति पाने के लिए भगनाम परशुराम ने लोहार्गल जी में यज्ञ किया था और इसी यज्ञ से मुक्ति पायी थी। भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार माने जाते है।
मेला- लोहर्गल मेला भाद्रपद माह की गोगानवमी से अमावस्या तक तथा चैत्र में सोमवती अमावस्या के दिन भरता है। लोहर्गल मेले को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते है।